अभ्यास

रानी लक्ष्मीबाई (झांसी की रानी) निबंध – Jhansi ki rani lakshmibai in Hindi

Rani lakshmibai essay in Hindi -रानी लक्ष्मी बाई की जीवन परिचय

रानी लक्ष्मी बाई की कहानी

रानी लक्ष्मी का जन्म 19 नवम्बर 1828 को काशी के असीघाट , वाराणसी में हुआ था. इनका नाम रानीलक्ष्मी बाई विवाह के पश्चात पड़ा बचपन से इनका नाम मणिकर्णिका था परन्तु इन्हे प्यार से मनु कहा जाता था. रानी लक्ष्मीबाई विन्रम स्वभाव कि भी तथा जनता का हित चाहती थी जितनी बहादुर भी उतना हि सरल स्वाभाव रखती थी और रानी लक्ष्मीबाई एक मराठी परिवार से थी इनके पिता बाजीराव पेशवा के सेवक थे.

कम उम्र में हि उनकी माँ का देहांत हो गया था. जब वह केवल चार वर्ष कि उम्र में थी. इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था. बचपन से हि रानी लक्ष्मीबाई अग्रेजी सरकार का विरोध करती थी. कम उम्र में हि अर्थात 13 या 14 वर्ष के आस पास हि उनका विवाह झांसी के महाराज श्री गंगाधर राव से हुआ था. शादी के बाद इनका नाम मणिकर्णिका से बदलकर रानी लक्ष्मीबाई रख दिया था. रानी बचपन से हि विरांगना थी. मा कि मृत्यु हो जाने के बाद उनकी देखभाल करने वाला कोई नही था इसलीए उनके पिता उनको अपने साथ राज दरबार हि ले जाया करते थे इसी कारण रानी लक्ष्मीबाई कि शिक्षा भी वही राज दरबार में पुरी हुई रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी शास्त्र कि शिक्षा के साथ शस्त्र कि भी शिक्षा लि.

rani lakshmibai real photo
Rani lakshmibai real photo (रानी लक्ष्मी बाई की रियल फोटो)चित्र, (1850 या 1860)। संभवतःउनकी  मृत्यु के बाद (जून 1858): वह एक बहुमूल्य मोती का हार और एक घुड़सवार महिला की वर्दी पहनती है

1857 कि यह क्रान्ति जिससे देश भर में आजादी का बिगुल बजा दिया गया वह अंग्रेजो के विरूध भारत कि पहली क्रान्ति और कोशिश थी जिससे चारों और आजादी के लिए लहर दौड उठी हर तरफ बस आजादी के लिए बिगुल बजाए गए चारों तरफ अग्रेजी सेना का वीरोध होने लगा. आम जनता भी राष्ट्रप्रेम दिखाने के लिए युद्ध में भाग लेने लगी.

रानी लक्ष्मीबाई के गुरू का नाम तात्या टोपे था उन्होने हि रानी लक्ष्मी बाई को शस्त्र चलाना सिखाया था. बचपन से हि रानी ने अंग्रेजो का विरोध करना चालु कर दिया था जिससे वहा के अंग्रेज सरकार के जरनल या लार्ड गवनरल लक्ष्मीबाई से चिडते थे. शादी के पहले झाँसी के महाराज गंगाधर राव से अंग्रेज सरकार इतना नही डरती थी परन्तु लक्ष्मीबाई के आने के बाद अंग्रेज सरकार पर उनका दबदबा शुरू हो गया था.

शादी के बाद जब रानी को पुत्र प्राप्त हुआ तो उसकी मात्र चार माह में हि मृत्यु हो गई और एक तरफ महाराज गंगाधर राव का भी स्वास्थ दिन ब दिन बिगड़ता जा रहा था जिससे उन्होने एक पुत्र को गोद लिया और उसका नाम भी अपने पहले पुत्र का नाम दामोदर दे दिया गया. अग्रेजो द्धारा रानी के दत्तक पुत्र को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर लिया गया. क्योकि यदि गंगाधर के मृत्यु के बाद झांसी का कोई उत्तराधिकारी नही होगा तो अग्रेजो द्धारा झांसी पर पुर्ण रूप से अंग्रेजो का अधिकार होगा.

अंग्रेज पहले से हि झांसी पर अधिकार कर लेना चाहते थे. परन्तु रानी लक्ष्मीबाई के होते यह संभव नही था. रानी अपनी आखरी सांस तक झांसी के लिए अग्रेजो से लड़ी. गंगाधर कि मृत्यु के बाद अग्रेजो ने झाँसी का सारा खजाना जब्त कर लिया. अग्रेजी सरकार ने गंगाधर राव के मृत्यु के बाद झांसी को अग्रेजी राज्य में विलय करने कि निती बनाली जिसे रानी ने मानने से इंकार कर दिया.

अग्रेजो के खिलाफ रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध में कई ओर भी शामिल हुए जो अंग्रेजो कि हडपने कि निति के शिकार हुए जैसे – बहादुर शाह जफर , बेगम हजरत महल , जीनत महल , अजीमुल्ला शाहगझढ़ के राजा और तात्या टोपे आदि ने महारानी के इस युद्ध में इनका साथ दिया. झाँसी कि जनता ने भी रानी लक्ष्मीबाई का खुब साथ दिया. रानी ने अपनी झाँसी में स्वयं महिला सेना का गठन किया जिसमें नारीयो को भी योद्धा कि तरह लडना सिखाया गया. जिससे महिला सेना बनाई गयी.

1858 में अग्रेजो कि सेना ने झाँसी कि तरफ अपने पैर फैलाना शंरू कर दिए और तिन चार महिनों के बाद अंग्रजो ने झाँसी पर कब्जा कर दिया उस समय रानी लक्ष्मी बाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर को अपनी पीठ पर बांध कर अंग्रेजी सेना से बचने के लिए झाँसी से भाग निकली वहा से भागकर रानी तात्या टोपे से मिली. तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी पुरी सेना कि मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया रानी बहुत बहादुरी के साथ अंग्रजो से लड़ी परन्तु अंतिम समय में उनका घोड़ा एक नदी या तालाब पार नही कर पाया जिससे रानी अंग्रेजो के हाथ में आ गई और वीरगति को प्राप्त हो गई. आज तक लक्ष्मीबाई के जैसी भारत में कोई भी वीरागना नही हुई. आज भी स्त्री के बहादुरी के रूप के दर्शाने के लिए उसे झासी कि रानी के नाम से संबोधीत किया जाता है. रानी लक्ष्मी बाई हर नारी के लिए प्रेरणा दायक है. प्रसिद्ध कवियित्री सुभ्रदा कुमारी चोहान ने रानी लक्ष्मीबाई के लिए  एक सुन्दर कविता लिखी थी जिसमें रानी के लिए दो लाइन पेश है.

“बून्देले हर बोले के मुह हमने सुनी कहानी थी “
खुब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना को हमारा देश आज भी नमन करता है. (Rani laxmibai kahani)

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