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चंद्रशेखर आजाद की जीवनी और निबंध हिंदी – Chandra shekhar azad Nibandh Hindi

Chandra shekhar azad autobiography and essay in Hindi

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में चंद्रशेखर आजाद के नाम को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है. भारतीय क्रांतिकारियों की सूचि में यह एक जाना माना और सम्मानित नाम है. उनकी कम उम्र में जो सहस और निडरता ने उन्हें भारत के युवाओ में काफी लोकप्रिय बना दिया है. निबंध जीवन परिचय के बाद लिखा है.

चंद्रशेखर आजाद की जीवन परिचय – Chandra shekhar azad jivan parichay

महान नेता चंद्रशेखर बहुत काम उम्र में ही आजाद ब्रिटिश विदेशी आंदोलनों में भाग लेने के लिए प्रेरित हुए जब वह कशी विद्यापीठ वाराणसी में पढ़ रहे थे. तो वह केवल 15 साल के थे तब उन्होंने महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए असहयोग आंदोलन में सक्रीय रूप से भाग लिया था. वह असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए जेल में जाने वाले सबसे काम उम्र के आंदोलन कारी थे. केवल 15 साल की उम्र में आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए एक युवा के लिए बहुत कम उम्र है. लेकिन आजाद ने भारत को स्वतंत्र करने के लिए यह लड़ाई लड़ी चौरी चौरा की घटना के बाद जब महात्मा गाँधी ने 1922 में असहयोग आंदोलन को ख़तम करने का फैसला लिया तो इस फैसले से खुश नहीं थे.

1922 में गाँधी द्वारा असहयोग आंदोलन को ख़तम करने के बाद आजाद राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये जिन्होंने क्रन्तिकारी गतिविधियों में शामिल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नमक संस्थान की स्थापना की चंद्रशेखर आजाद को मोतीलाल नेहरू जैसे बहुत सारे दिग्गज नेताओ का समर्थन प्राप्त था. जिन्होंने नियमित रूप से एच आर ए के समर्थन के लिए पैसे दिए थे. उन दिनों उन्हें कई कांग्रेस नेताओ का भी समर्थन मिला था. खासतौर से जब वह सयुंक्त प्रान्त में जो इन दिनों उत्तरप्रदेश में झांसी के निकट है. एक बदली हुई पहचान पंडित हरिशंकर ब्रम्हचारी के साथ जी रहे थे. चंद्रशेखर आजाद ने 6 साल के भीतर भगत सिंह अशफाक उल्ला खान,शुखदेव थापर और जगदीस चंद्र चटर्जी के साथ मिल जुल कर हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन संसथान का गठन किया था.

काकोरी ट्रैन डकैती – Kakori conspiracy hindi

9 अगस्त1925 को काकोरी ट्रैन डकती की घटना के षड्यंत्र को काकोरी और लखनऊ के बीच अंजाम दिया गया था. रामप्रसाद बिस्मल और आसफाकउल्ला खान के साथ मिलकर एच.आर ए की गतिविडिया में निधि देने और संगठन के लिए हथियार खरीदने के इरादे से यह लूट की गयी थी.

सरकारी खजाने के लिए पैसा ले जाने वाली इस ट्रैन को बिस्मिल आसफाकउल्ला खान ,राजेंद्र लहिरी और एच.आर.ए के अन्य सदस्यों ने मिलकर ट्रैन को लूट लिया था. गार्ड के कोच में मौजूद एक लाख रूपये को उनोहोने लूट लिया था.

27 फरवरी 1931 को आज़ाद जब इलाहाबाद के आज़ाद पार्क में छिपे थे वीरभद्र तिवारी नाम का एक पुराना साथी पुलिस का मुख़बिर बन गया और आज़ाद के वहां होने की सुचना पुलिस को दे दी पुलिस के साथ भिड़ते हुए आज़ाद ने अपने कोल्ट पिस्टल से गोलिया चालई ,लेकिन जब उसमे केवल एक गोली बची थी ,तो उनोहने खुद को गोली मार ली.

आज़ाद अपने साथियो से कहा करते थे की वो कभी पकडे नहीं जायेंगे और हमेशा आज़ाद ही रहेंगे वास्तव में वह गिरफ्तार होने की स्थिति में एक अतरिक्त गोली अपने साथ रखते थे ,ताकि वह खुद को मार सके.

चंद्रशेखर आजाद निबंध – Chandrashekhar azad nibandh Hindi

चंद्र शेखर आजाद भारत में जन्मे एक बहादुर और क्रन्तिकारी व्यक्ति थे. जिन्हे उनकी गतिविधियों के लिए हमेषा याद किया जाता है. अपने साहसिक गतिविधियों के कारन वो भारतीय युवाओ में एक हीरो के रूप में जाने जाते है. अपने नाम के अनुसार ही वो अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ की गयी कई क्रन्तिकारी गतिविधियों के बाद भी ब्रिटिश कभी उन्हें पकड़ नहीं पाए.

उनके क्रन्तिकारी गतिविधियों पर एक नजर, चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ जुड़े थे जिसको 1928 में बदलकर हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के नाम से जाना जाने लगा. दोनों ही संगठनों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रन्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया और और उन गतिविधियों में चंद्र शेखर आजाद हमेशा आगे ही रहे चंद्र शेखर आजाद से जुडी कुछ महत्वपूर्ण गतिविधियों को निचे प्रदर्शित किया गया है.

काकोरी ट्रैन डकैती ट्रैन डकैती की यह घटना 9 अगस्त 1925 में लखनऊ के नजदीक काकोरी में चंद्रशेखर आजाद और हिंदुस्तान रेपुब्लिकन एसोसिएशन के अन्य साथियों द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया था. इस घटना का मुख्या उद्देश्य संघ की क्रन्तिकारी गतिविधियों को वित्तपोषित करना था.

वायसराय की ट्रैन को उड़ाया, चंद्र शेखर आजाद ने 23 दिसंबर 1926 में वायसराय लार्ड इरविन को ले जनि वाली ट्रैन को बम धमाके में उड़ाने में भी शामिल थे में उतर गयी थी और वायसराय अचेत हो गया था.

सांडर्स की हत्या, चंद्र शेखर आजाद ने 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह और राजगुरु के साथ मिलकर लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने के लिए परिवीक्षादिन पुलिस अधिकारी जॉन सांडर्स की हत्या में शामिल हुए थे और लाला लाजपतराय जी के मोत का बदला लिया था.

महान नेता चंद्रशेखर आजाद जी आजाद थे और आजाद ही रहे और आज वे हर भारतीयों के दिल में अमर है.

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